( तर्ज - मेरा प्रभू झूला झुले घरमाँही ० )
निजरूप को मिलवा ले पिया रे ! ।
सब कोइ होगा किया
ना किया रे ॥टेक ॥
आतमतत्व समझ गुरु - सँगमें ,
सब कुछ साध लिया रे!
मै कौन ? मेरा ठिकाना कहाँ है ?
यह भेद समझ तिहारे ॥ १ ॥
जबतक आतमतत्त्व न जाने ,
जोभी किया सब हारे ।
दिव्य स्वरूप समझ भाई !
गुरुसे , जनम सफल होय प्यारे!
अमर झरा पिये मस्त रहोगे ,
सद्गुरु - ध्यान किया रे ।
कहे दास तुकड्या सुध लो कहनकी ,
हो जाओ मायासे न्यारे ||३||
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